इस लेख में Shankar Jaikishan Biography, Education, Early Life, Award, Wiki and Friendship, Family और अन्य जानकारी हिंदी में शामिल है।
1949 से 1971 तक, एक भारतीय संगीतकार जोड़ी, शंकर-जयकिशन (एसजे) ने हिंदी फिल्म उद्योग में काम किया था। जिन्हें SJ भी कहते हैं. उन्हें हिंदी फिल्म उद्योग में सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में से एक माना जाता है। 1971 में जयकिशन का निधन हो गया, इसके बाद शंकर ने 1987 में मरने तक अकेले संगीत निर्देशक के रूप में काम किया। उन्हें अभी भी इस एकल कैरियर के दौरान “शंकर-जयकिशन” के नाम से जाना जाता है।
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Shankar Jaikishan Biography
Shankar Jaikishan दो लोगो की एक जोड़ी है जो अपने जीवन के दौरान एक साथ काम करते थे। इस लेख में शंकर-जयकिशन दोनों लोगो का जीवन परिचय और अन्य जानकारी दिया गया है।
Shankar Biography
शंकर का असली नाम शंकर सिंह रघुवंशी है। शंकर का बचपन हैदराबाद में बिता है, हालांकि उनका जन्म 15 अक्टूबर 1922 को पंजाब में हुआ था। उन्हें बचपन से संगीत में रुचि थी। 16 वर्ष की उम्र में वह मुंबई भाग गए। शंकर के संगीत के प्रति जुनून से बॉलीवुड संगीत निर्देशक हुस्नलाल भगतराम बहुत खुश थे। वह घंटों तक तबला बजाते थे और अच्छी तरह से करते थे। उन्हें जल्द ही हुस्नलाल भगतराम ने मंच पर अभिनय करने के लिए प्रेरित किया। उन्हें पृथ्वी थिएटर में प्रदर्शन करने का मौका मिला, जहां वे महान अभिनेता और संस्थापक पृथ्वीराज कपूर के पसंदीदा बन गये।
Jaikishan Biography
4 नवंबर 1929 को बांसदा, गुजरात में जयकिशन दयाभाई पांचाल का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम दहयाभाई पांचाल है। दहयाभाई पांचाल के एकलौते पुत्र जयकिशन परिवार के साथ बांसदा (वर्तमान गुजरात राज्य का एक शहर) में रहते थे। जयकिशन ने हारमोनियम बजाने में महारत हासिल की थी। बाद में उन्होंने संगीत विशारद वाडीलालजी से और फिर प्रेम शंकर नायक से संगीत की शिक्षा ली। वह मुंबई चले गए और विनायक तांबे के शिष्य बन गए।
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Shankar Jaikishan Education
जयकिशन दयाभाई पांचाल को भी शंकर सिंह रघुवंशी की तरह शिक्षा में रुचि नहीं थी, दोनों लोग मन से पढ़े – लिखे नहीं थे लेकिन उनके संगीत प्रेम ने उन्हें अमर बना दिया।
संगीत की शिक्षा
हारमोनियम बजाने में उनकी रुचि थी। उनका मूल रूप से हारमोनियम प्रशिक्षण वाडीलालजी ने दिया था। बाद में पुणे में प्रेम शंकर नायक और मुंबई में विनायक तांबे से शिक्षा ली।
शंकर और जयकिशन से मुलाक़ात, कैसे बानी जोड़ी
शंकर जयकिशन भी अजीब ढंग से मिले। शंकर अक्सर ऑपेरा हाउस थियेटर के पास व्यायामशाला में अभ्यास करते थे और वहीं दत्ताराम से मिले। दत्ताराम शंकर से तबले और ढोलक की कला सीखने लगे, और एक दिन दादर में गुजराती फिल्मकार चंद्रवदन भट्ट से मिलकर फ़िल्मों में संगीत का काम करने लगे। जयकिशन भी फिल्मों में काम करने की कोशिश कर रहे थे। शंकर को इंतज़ार के क्षणों में ही पता चला कि जयकिशन हारमोनियम बजाते हैं। सौभाग्य से, उस समय पृथ्वी थियेटर में हारमोनियम मास्टर की जगह नहीं थी। जयकिशन ने शंकर की पेशकश मान ली, जिसे पृथ्वी थियेटर्स के परचम तले शंकर और जयकिशन मिलकर काम करने लगे।
दोनों ने साथ भी पठान में काम किया। काम के साथ दोस्ती भी बढ़ी। शंकर हुस्नलाल भगतराम के साथ-साथ तबला बजाते थे और दोनों भाइयों से संगीत की कई बारीकियाँ सीखीं। शंकर और जयकिशन पृथ्वी थियेटर्स में ही काम करते हुए राजकपूर के करीबी हो गए। हालाँकि राज कपूर ने अपनी पहली फ़िल्म में संगीत दिया था।
शंकर और जयकिशन के साथ फिल्मो में योगदान
जयकिशन और शंकर ने लगभग 170 से अधिक फिल्मों में संगीत दिया है। उनकी कुछ महत्वपूर्ण फ़िल्में हैं-
- बादल (1951)
- नगीना (1951)
- शिकस्त (1953)
- सीमा (1955)
- चोरी-चोरी (1956)
- नई दिल्ली (1956)
- राजहठ (1956)
- कठपुतली (1957)
- यहूदी (1958)
- अनाडी (1959)
- जिस देश में गंगा बहती है (1960)
- ससुराल (1961)
- प्रोफसर (1962)
- दिल एक मंदिर (1963)
- राजकुमार (1964)
- तीसरी कसम (1966)
- कन्यादान (1968)
- कन्यादान (1968)
- अंदाज़(1971)
- लाल पत्थर (1971)
- संन्यासी (1973)
इसके आलावा बहुत सारी महत्वपूर्ण फिल्मों में एक साथ काम किये है।
शंकर-जयकिशन के पुरस्कार
जयकिशन और शंकर को नौ बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला: चोरी चोरी (1956), अनाडी (1959), दिल अपना और प्रीत पराई (1960), प्रोफेसर (1963), सूरज (1966), ब्रह्मचारी (1966), मेरा नाम जोकर (1970), पहचान (1971) और बेईमान (1972)। उन्हें लगातार तीन वर्ष तक अंतिम तीन पुरस्कार मिले।
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